भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली गई चार मैचों की टेस्ट सीरीज को भारत ने 2-1 से अपने नाम कर लिया। भारत ने चौथे टेस्ट मैच में कंगारुओं को 8 विकेट हराकर इस खास उपलब्धि को हासिल किया। ये सीरीज जीत इसलिए भी खास है क्योंकि भारत सीरीज का पहला ही मैच हार गया था। लेकिन टीम इंडिया ने पलटवार करते हुए अगला टेस्ट जीता और सीरीज को 1-1 की बराबरी पर ला दिया। वहीं तीसरा टेस्ट बराबरी पर खत्म होने के बाद सबकी निगाहें आखिरी टेस्ट पर टिक गईं थीं। लेकिन आखिरी टेस्ट में भारत ने जीत दर्ज कर भारत में ऑस्ट्रेलिया के सीरीज जीतने के सपने पर पानी फेर दिया। आइए नजर डालते हैं टीम इंडिया की सीरीज में जीत के पांच कारणों पर।
रविंद्र जडेजा का गेंद और बल्ले से चमकना, अश्विन की खतरनाक गेंदबाजी: सीरीज से पहले हर कोई सिर्फ रविचंद्रन अश्विनकी बात कर रहा था। लेकिन रविंद्र जडेजा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए खुद को साबित किया। जडेजा को उनके बेहतरीन ऑलराउंड खेल के लिए ‘मैन ऑफ द सीरीज’ के सम्मान से भी सम्मानित किया गया। साथ ही जडेजा इस सीरीज में अश्विन से बेहतर साबित हुए। हालांकि दोनों खिलाड़ियों ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई और बल्ले और गेंद से गजब का खेल दिखाया। जडेजा की बात करें तो उन्होंने इस सीरीज में 25 विकेट झटके। साथ ही उन्होंने 5 या इससे ज्यादा विकेट 2 बार हासिल किए। इसके अलावा उन्होंने बल्ले से अपना दम दिखाते हुए सीरीज में कुल 127 रन बनाए। जिनमें 2 अर्धशतक भी शामिल थे। जडेजा का सर्वोच्च 63 रन रहा।
वहीं अश्विन की बात करें तो हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने भारत की जीत में बेहद अहम भूमिका निभाई। अश्विन ने सीरीज में अपनी फिरकी से 21 विकेट हासिल किए। इस दौरान उन्होंने 1 बार पांच या इससे ज्यादा विकेट प्राप्त किए। इस सीरीज में अश्विन का बल्ले के साथ प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा, लेकिन उन्होंने क्रीज पर वक्त बिता कर भारत को संकट से निकालने का काम किया। अश्विन ने इस सीरीज में 53 रन ही बनाए और उनका सर्वोच्च 30 रहा। भले ही अश्विन बल्ले से कुछ खास नहीं कर सके हों, लेकिन उन्होंने गेंदबाजी में बेहतरीन प्रदर्शन किया और जडेजा के सीथ कदमताल मिलाकर भारत को जीत कीं मंजिल तक पहुंचा दिया [ये भी पढ़ें: भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया धर्मशाला टेस्ट का पूरा स्कोरकार्ड यहां देखें]
उमेश यादव की तेजी के सामने पस्त हुआ ऑस्ट्रेलिया: भारत में जब भी मैच खेले जाते हैं, तो विशेषज्ञ हमेशा स्पिन गेंदबाजों की ही बात करते हैं। क्योंकि भारतीय पिचें स्पिन गेंदबाजों के अनुकूल होतीं हैं। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में उमेश यादव ने अपनी तेजी, बाउंस और रिवर्स स्विंग से बल्लेबाजों के पसीने छुटा दिए और जमकर विकेट लिए। उमेश ने इस सीरीज में 17 विकेट अपने नाम किए। जिसमें उनका सर्वोच्च 32 रन देकर 4 विकेट रहा। इसके साथ ही वह किसी भी घरेलू सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले दूसरे भारतीय तेज गेंदबाज बन गए। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार मैचों में कुल 17 विकेट लिए हैं। उनके अलावा यह उपलब्धि केवल जवागल श्रीनाथ के नाम है, जिन्होंने 1996 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में 17 विकेट चटकाए थे। साफ है उमेश ने बेहतरीन गेंदबाजी का परिचय दिया और उन्होंने दिखाया कि वो किसी भी पिच पर विकेट निकालने का माद्दा रखते हैं।
टीम इंडिया का सबसे बड़ा ‘रन’वीर: सीरीज में तीसरा टेस्ट सबसे अहम था। एक समय भारतीय टीम पिछले कदमों पर नजर आने लगी थी। लेकिन फिर ऑस्ट्रेलिया का सामना हुआ भारत की ‘दीवार’ चेतेश्वर पुजारा से। पुजारा क्रीज पर आते ही बेहतरीन खेल दिखाने लगे और उनपर किसी भी कंगारू गेंदबाजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था। अंत में उन्होंने दोहरा शतक जड़कर भारत को बेहद ही मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया। पुजारा ने 4 मैचों में 57.85 की औसत के साथ कुल 405 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने एक शतक और दो अर्धशतक लगाए। पुजारा का सर्वोच्च 202 रन रहा। पुजारा भारत की तरफ से इस सीरीज में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। ये भी पढ़ें: मैंने ऑस्ट्रेलिया को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की ठान ली थी: उमेश यादव
एक ओपनर ने संभाली जिम्मेदारी: इस सीरीज में भी भारत की सलामी बल्लेबाजी की चिंता दूर नहीं हुई। लेकिन पिछली सीरीजों के मुकाबले इस सीरीज में दोनों सलामी बल्लेबाजों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। हालांकि सीरीज में सिर्फ एक ही बार दोनों के बीच अर्धशतकीय साझेदारी हुई, लेकिन दोनों ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और हर मैच में दोनों में से एक ने अच्छी पारी खेली। सलामी बल्लेबाजों के प्रदर्शन की बात करें तो राहुल ने इस सीरीज में 65.50 की औसत के साथ 393 रन बनाए, इस दौरान उनके बल्ले से 6 अर्धशतक ठोके। वहीं उनका सर्वोच्च 90 रन रहा। दूसरी तरफ विजय के बल्ले से इस सीरीज में 22.60 की औसत के साथ 113 रन निकले। उन्होंने सिर्फ 1 अर्धशतक ही लगाया।
टीम का एकजुट प्रदर्शन: इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारतीय टीम ने एकजुट होकर खेला और पूरी टीम ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दिया। सीरीज के दौरान कई तरह के बड़े विवाद सामने आए, लेकिन टीम ने अपनी एकाग्रता भंग नहीं होने दी और विवादों का असर अपने खेल पर नहीं पड़ने दिया। हर खिलाड़ी को अपना रोल पता था और उसने वो निभाया भी। यहां तक की सिर्फ आखिरी मैच में खेलने वाले कुलदीप यादव ने भी अपनी उपयोगिता साबित की और पहली पारी में 4 विकेट झटके। भारतीय टीम की जीत की जो सबसे खास बात रही वो थी बल्लेबाजी में गहराई। निचले क्रम तक बल्लेबाजों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। फिर चाहे वो जडेजा हों या फिर विकेटकीपर बल्लेबाज रिद्धिमान साहा। साहा इस सीरीज में भारत की तरफ से शतक लगाने वाले सिर्फ दूसरे बल्लेबाज रहे। टीम की एकजुटता के सामने कंगारू टीम की छींटाकशी की रणनीति भी विफल साबित हुई और पूरी टीम ने इसका माकूल जवाब दिया। साफ है भारत के लिए काफी खास है और इस जीत की यादें लंबे समय तक क्रिकेट प्रेमियों के जहन में ताजा रहेंगी।
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