आज से ठीक 34 साल पहले टीम इंडिया के रणबांकुरों ने लंदन के लॉर्डस मैदान पर प्रूडेंशियल विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया था। कपिल देवकी अगुआई में टीम इंडिया ने जैसे ही विश्व कप की ट्रॉफी अपने नाम की पूरे देश में क्रिकेट खेल को लेकर जुनून फूट पड़ा। उसी समय कई छोटी उम्र के लड़कों ने क्रिकेट में अपना करियर बनाने की कसमें खा ली थी। यही एक दौर था जब टीम इंडिया में एक से एक बड़े क्रिकेटरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और अगले एक दशक के बाद टीम इंडिया एक ऐसी टीम बनकर उभरी जिससे आंख मिलाना हर टीम के बस की बात नहीं थी लेकिन 1983 विश्व कप कैसे टीम इंडिया के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ और एक औसत दर्जे की टीम ने कैसे अपने नाम विश्व कप का खिताब किया? आइए आपको बताते हैं।
1983 विश्व कप में टीम इंडिया का सफर: यह लगातार तीसरा विश्व कप था जिसका आयोजन इंग्लैंड में किया गया। टीम इंडिया का पहला मुकाबला वेस्टइंडीज के खिलाफ हुआ। पहले मैच में टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज को बेहतरीन अंदाज में 34 रनों से हराते हुए अपनी पहली जीत दर्ज की। इसके बाद दूसरे मैच में टीम इंडिया ने जिम्बाब्वे को पांच विकेट से हराया। लेकिन नॉटिंघम में खेले गए तीसरे मैच में टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 162 रनों से बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अगले मैच में टीम इंडिया को वेस्टइंडीज ने 66 रनों से हरा दिया था। फिर क्या था, टीम इंडिया टूर्नामेंट से बाहर होने की कगार पर पहुंच गई।
ऐसे में टीम इंडिया ने जिम्बाब्वे के खिलाफ 31 रनों से फिर से जीत दर्ज की और अपनी उम्मीदें जिंदा रखी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया को 118 रनों से हराते हुए सेमीफाइनल का सफर तय किया। सेमीफाइनल में टीम इंडिया और इंग्लैंड का आमना- सामना हुआ। सेमीफाइनल में इंग्लैंड को 4 विकेट से हराते हुए टीम इंडिया ने फाइनल में प्रवेश किया। वहीं, दूसरे सेमीफाइनल में पाकिस्तान को 8 विकेट से हराने के साथ वेस्टइंडीज ने फाइनल में प्रवेश किया।
फाइनल मैच 25 जून, 1983: वर्ल्ड कप 1983 का फाइनल 25 जून 1983 के दिन लंदन के लॉर्ड्स मैदान पर भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेला गया। वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लॉयड ने टॉस जीता और भारतीय टीम को बल्लेबाजी करने के लिए आमंत्रित किया। पिच से तेज गेंदबाजों को खासी मदद मिल रही थी। इसलिए बल्लेबाज बैकफुट पर शुरू से ही नजर आए। सुनील गावस्कर को एंडी रॉबर्ट ने 2 रन के व्यक्तिगत स्कोर पर ही चलता किया।
इसके बाद के श्रीकांत ने दूसरे विकेट के लिए मोहिंदर अमरनाथ के साथ अर्धशतकीय साझेदारी निभाई। लेकिन इनके आउट होने के बाद विकटों की झड़ी लग गई और अंततः टीम इंडिया 54.4 ओवरों में 183 रन बनाकर ऑलआउट हो गई। टीम इंडिया की ओर से के श्रीकांत ने सर्वाधिक 38 और मोहिंदर अमरनाथ ने 26 रन बनाए।
इनके अलावा अन्य कोई भारतीय बल्लेबाज कुछ खास नहीं कर सका। वेस्टइंडीज की ओर से एंडी रॉबर्टस ने सर्वाधिक 3 विकेट लिए। वहीं, मार्शल, होल्डिंग और गोम्स ने दो-दो विकेट लिए। जोएल गार्नर को एकमात्र विकेट मिला। इतने कम स्कोर के साथ टीम इंडिया की हार लगभग निश्चित नजर आ रही थी।
इसी बीच वेस्टइंडीज के दोनों ओपनर चहलकदमी करते हुए मैदान के बीचों-बीच आ गए। बलविंदर संधू और कपिल देव ने गेंदबाजी की शुरुआत की। संधू ने टीम इंडिया जो जल्दी ही सफलता दिलवा दी। उन्होंने ओपनर गॉर्डन ग्रिनिज को 5 रन पर आउट कर दिया। इसके बाद डेसमंड हायन्स और विवियन रिचर्ड्स पारी को संभालने लगे। रिचर्ड्स तेजी से रन बना रहे थे। वह लगातार चौके लगा रहे थे। ऐसे में टीम इंडिया के खेमे में चिंता पसर गई। लेकिन इसी बीच मदन लाल लौटे और उन्होंने दोनों हाइन्स और रिचर्ड्स को पवेलियन भेज दिया। रिचर्ड्स ने 28 गेंदों में 33 रन 7 चौकों की मदद से बनाए।
इसके बाद तो वेस्टइंडीज के विकटों की झड़ी लग गई और पूरी वेस्टइंडीज टीम 52 ओवरों में 140 रनों पर ऑलआउट हो गई और टीम इंडिया ने 43 रन से जीत हासिल करते हुए पहला विश्व कप खिताब अपने नाम कर लिया। इस मैच में मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ ने 3-3 विकेट लिए वहीं बलविंदर संधू ने दो विकेट लिए। कपिल देव और रोजर बिन्नी को 1-1 विकेट नसीब हुआ। मोहिंदर अमरनाथ को 26 रन और 3 विकेट लेने के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।
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