विराट कोहली की कप्तानी में तीसरे विश्व कप खिताब की उम्मीद में इंग्लैंड पहुंची भारतीय टीम को परेशानियों को अनदेखा करना महंगा पड़ा। विश्व कप से पहले भारतीय टीम घर पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज हारी थी, जहां टीम के बल्लेबाजी मध्य क्रम की कमजोरी साफ नजर आई। लेकिन चयनकर्ताओं ने टीम चयन में ऑलराउंडर क्रिकेटरों को ज्यादा महत्व देकर मध्य क्रम को कमजोर ही छोड़ दिया। जो कि भारतीय टीम को बेहद भारी पड़ा।
टीम का सकारात्मक पहलू: विश्व कप में टीम इंडिया के लिए सबसे सकारात्मक चीज उनकी गेंदबाजी रही। भारतीय गेंदबाजों ने पूरे विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन किया। गेंदबाजी अटैक की अगुवाई करते हुए जसप्रीत बुमराह ने एक बार फिर साबित किया कि किस वजह से उन्हें मौजूदा सीमित ओवर फॉर्मेट क्रिकेट का नंबर एक गेंदबाज माना जाता है। बुमराह ने 9 मैचों में कुल 18 विकेट झटके। वहीं अपने कमबैक की कहानी लिख रहे मोहम्मद शमी भी ज्यादा पीछे नहीं थे। शमी ने चार मैचों में 14 विकेट लिए। हालांकि आखिरी दो मैचों, खासकर कि सेमीफाइनल में शमी को ना खिलाने का टीम मैनेजमेंट का फैसला सभी को खटका।
टीम इंडिया के रिस्ट स्पिन युजवेंद्र चहल ने 8 मैचो में 12 विकेट हासिल किए। गेंदबाजी अटैक में भुवनेश्वर कुमार और कुलदीप यादव रहे। भुवी ने 6 मैचों में 10 विकेट लिए और यादव ने 7 मैचों में मात्र 6 विकेट लिए।
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चमके उपकप्तान: विश्व कप में भारतीय टीम काे लिए सबसे बेहतरीन प्रदर्शन कप्तान रोहित शर्मा ने किया। उपकप्तान ने लगातार पांच शतक लगाकर विश्व कप इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। साथी बल्लेबाज शिखर धवन के चोटिल होने के बाद रोहित ने एक छोर से भारतीय बल्लेबाजी को संभाला। रोहित ने 9 मैचों में 81 के शानदार औसत से 648 रन बनाए और विश्व में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले भारतीय बल्लेबाज रहे। लेकिन रोहित अकेले भारतीय टीम को खिताब तक नहीं पहुंचा सकते थे। न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में जब रोहित असफल हुए तो पूरा बल्लेबाजी क्रम बिखर गया।
पूरे विश्व कप टूर्नामेंट में नहीं मिला नंबर-4 का बल्लेबाज: विश्व कप स्क्वाड का ऐलान होने से पहले टीम इंडिया के नंबर चार के बल्लेबाज अंबाती रायडू थे जैसा कि कप्तान विराट कोहली ने कहा था। लेकिन न्यूजीलैंड सीरीज के बाद रायडू को अनदेखा कर रिषभ पंत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज में नंबर चार पर मौका दिया गया। फिर अचानक से विश्व कप स्क्वाड में ऑलराउंडर विजय शंकर को नंबर चार के बल्लेबाज के विकल्प के तौर पर मौका दे दिया गया।
शंकर ने विश्व कप में केवल तीन मैच खेले, जिसमें उन्होंने मात्र 58 रन बनाए और दो विकेट लिए। टूर्नामेंट के दौरान केएल राहुल को भी नंबर चार पर मौका मिला लेकिन शिखर धवन के चोटिल होने के बाद उन्हें सलामी बल्लेबाजी की जिम्मेदारी दे दी गई।
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शंकर के चोटिल होने के बाद स्टैंड बाय खिलाड़ी पंत को विश्व कप स्क्वाड में शामिल किया गया और चार नंबर की बल्लेबाजी सौंपी गई। पंत ने चार मैचों में 116 रन बनाए। हालांकि उनमें प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में पंत कई बार लापरवाही भरे शॉट खेलते दिखे। विश्व कप में मध्य क्रम को संभालने के लिए उठाया टीम इंडिया का हर कदम असफल रहा और नतीजतन सेमीफाइनल में भारत की हार हुई।
टीम इंडिया के विश्व कप के लिए रवाना होने से पहले कई क्रिकेट समीक्षकों ने भारतीय मध्य क्रम की कमजोरी पर सवाल उठाए थे लेकिन बोर्ड और टीम मैनेजमेंट ने इन अनदेखा किया। भारतीय टीम एक ऐसे स्क्वाड के साथ इंग्लैंड पहुंची जिसमें रोहित, धवन और कोहली जैसे दिग्गज शीर्ष क्रम बल्लेबाज थे लेकिन मध्य क्रम में कोई अनुभवी खिलाड़ी नहीं था। भारतीय चयनकर्ताओं और मैनेजमेंट की इस गलती का खामियाजा खिलाड़ियों और लाखों भारतीय फैंस को भुगतना पड़ा।