आईसीसी विश्व कप में हर बार एक ताकतवर टीम के तौर पर गिनी जाने वाली दक्षिण अफ्रीका अब तक यह खिताब नहीं जीत पाई है। थोड़ी सी खराब किस्मत और ज्यादा बुरे प्रदर्शन की वजह से टीम पर लगा ‘चोकर्स’ का टैग।
दक्षिण अफ्रीका की टीम के आईसीसी विश्व कप में किए गए प्रदर्शन पर अगर नजर डाले तो इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बाद से टीम का प्रदर्शन लाजवाब रहा है। प्रतिबंध के बाद 1992 के विश्व कप में पहली बार खेलने के बाद से टीम ने सात टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है। इसमें से सिर्फ 1 बार टीम पहले दौर से बाहर हुई है वर्ना क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल तक का सफर जरूर तय किया है।
क्यों बुलाते हैं चोकर्स
चोकर्स आम तौर पर ‘चोक’ शब्द से बना है, जिसका मतलब है अहम मौकों पर अटक जाना या रुक जाना। जो सभी काम को अच्छे से अंजाम दे लेकिन अहम मौके पर अपने प्रदर्शन को कायम ना रख पाए, अब यह चाहे दबाव में हो या फिर परिस्थिति की वजह से।
कैसे लगा चोकर्स का टैग
दक्षिण अफ्रीका की टीम 1992 से अब तक चार बार विश्व कप सेमीफाइनल खेल चुकी है लेकिन कभी भी वह इस पड़ाव को पार नहीं कर पाई है। टीम के बड़े मैच में प्रदर्शन ना कर पाने की वजह से उसे ‘चोकर्स’ बुलाया जाता है।
साल 1992 में राउंड रॉबिन फॉर्मेट में टीम ने 8 में से 5 मैच जीतकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी लेकिन इंग्लैंड के हाथों दुर्भाग्यपूर्ण हार मिली। वर्षा से बाधित इस मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 45 ओवर में 252 रन बनाए थे।
द. अफ्रीका को 13 गेंद पर जब जीत के लिए 22 रन की जरूरत थी तभी बारिश शुरू हो गई। जब दोबारा मैच शुरू हुआ तो डकवर्थ लुईस नियम के आधार पर टीम के सामने 1 गेंद पर 22 रन का लक्ष्य था, जिसे हासिल करना नामुमकिन था। टीम को हार मिली और वो टूर्नामेंट से बाहर हो गई।
1996 विश्व कप से बाहर
ग्रुप स्टेज में अपने खेले 5 मुकाबलों में जीत हासिल करने के साथ टॉप पर रहते हुए टीम ने क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी। यहां वेस्टइंडीज के हाथों 19 रन से हारकर उसे बाहर होना पड़ा।
1999 का दुर्भाग्यपूर्ण सेमीफाइनल
इस साल के विश्व कप में भी टीम ने ग्रुप स्टेज में शानदार खेल दिखाया था। 5 में चार मुकाबलों में जीत हासिल कर अफ्रीकी टीम ने सुपर सिक्स में कदम रखा था। यहां भी 5 मुकाबले खेलकर टीम ने 3 जीत हासिल की और सेमीफाइनल में जगह बनाई।
ऑस्ट्रेलिया ने सेमीफाइनल में 214 रन का लक्ष्य रखा था जिसे हासिल करते हुए टीम ने 9 विकेट गंवा दिए थे। आखिरी ओवर में जीत के लिए उसे 9 रन की जरूरत थी। लांस क्लूजनर ने पहली दो गेंद पर चौका लगाया। 4 गेंद पर 1 रन की जरूरत थी और महज 1 विकेट ही बचा था। चौथी गेंद पर क्लूजनर ने शॉट लगाकर 1 रन चुराना चाहा लेकिन एलन डोनाल्ड रन आउट हो गए। स्कोर टाई हुआ और बेहतर रन रेट के आधार पर ऑस्ट्रेलिया फाइनल में पहुंच गई।
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2007 में भी सेमीफाइनल में हारी टीम
इस बार भी टीम का प्रदर्शन शानदार रहा और वह सेमीफाइनल में पहुंची लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम महज 149 रन पर ढेर हो गई। कंगारू टीम ने 7 विकेट से मैच अपने नाम किया।
2015 विश्व कप में भी टीम नाकाम
श्रीलंका पर क्वार्टर फाइनल में 9 विकेट की धमाकेदार जीत के बाद टीम के विश्व विजेता बनने की उम्मीद जताई जा रही थी। सेमीफाइनल में न्यूजीलैड के खिलाफ टीम को हर मिली और उसके विश्व कप फाइनल में पहुंचने का सपना, सपना ही रह गया।
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