BCCI आज दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड है। लेकिन मुंबई और मध्य प्रदेश के बीच हो रहे रणजी ट्रॉफी फाइनल में बोर्ड के DRS तकनीक के इस्तेमाल नहीं करने से कई लोग हैरान हैं।
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले जा रहे इस मैच में अंपायरिंग के कई ऐसे फैसले थे जो काफी करीब थे। लेकिन DRS के नहीं होने से उन फैसलों को चुनौती नहीं दी जा सकती थी। मुंबई के बल्लेबाज सरफराज खान को मध्य प्रदेश के गेंदबाज गौरव यादव की गेंद पर एक ‘जीवनदान’ भी मिला। पहले दिन ही जब इतने सवाल हैं तो बाकी के चार दिन भी विवादों से बचे रहें, ऐसा होना जरा मुश्किल है।
साल 2019-2020 के रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल और फाइनल के दौरान बीसीसीआई ने कहने को तो डीआरएस का इस्तेमाल किया था लेकिन वह आधा-अधूरा था। इसमें न हॉक-आई था और न ही अल्ट्रा एज- अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में DRS के लिए ये दोनों अभिन्न अंग हैं।
साल 2018-19 में टेस्ट बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा को दो बार विकेट के पीछे कैच लपके जाने पर जीवनदान मिला। रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में कर्नाटक और सौराष्ट्र की टीमें आमने-सामने थीं। और इस अंपायरिंग गलती का नतीजा यह हुआ कि कर्नाटक को मैच गंवाना पड़ा था।
BCCI का कहना है, ‘हमें अपने अंपायर्स पर भरोसा है।’ एक पूर्व भारतीय खिलाड़ी ने कहा, ‘DRS का इस्तेमाल करना काफी महंगी प्रक्रिया है। कीमत बढ़ जाती है। क्या फर्क पड़ता है अगर फाइनल में डीआरएस न हो तो। अब वक्त आ गया है कि हम अपने अंपायर्स पर भरोसा करें। भारत के दो सबसे अच्छे अंपायर्स केएन अनंतपद्मनाभन और वीरेंदर शर्मा इस मैच में अंपायरिंग कर रहे हैं। और इसका नतीजा क्या है? आप अगर इसे फाइनल में इस्तेमाल करेंगे तो फिर लीग स्टेज में भी इस्तेमाल करना चाहेंगे।’
अब बात करते हैं कीमत की। बीसीसीआई ने हाल ही में आईपीएल की नई टेलिकास्ट डील से 48390 करोड़ रुपये कमाए हैं। यहां हर मैच में डीआरएस इस्तेमाल किया जाएगा।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने मामले को करीब से जानने वाले एक सूत्र के हवाले से लिखा, ‘इसमें लगने वाली तारें और उपकरण बहुत महंगे होंगे। हॉक आई का अर्थ है कि अतिरिक्त कैमरों की जरूरत होगी। रणजी सीमित उपकरणों के साथ खेली जाती है। देखिए, आप आधा-अधूरा DRS इस्तेमाल नहीं कर सकते। पिछली बार आपको सीमित रीप्ले में यह देखना होता था कि गेंद ने बल्ले का किनारा लिया है या नहीं। आप बॉल की लाइन नहीं देख सकते थे जो डीआरएस का एक अहम हिस्सा है।’