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IPL 2022: अगर चेन्नई सुपर किंग्स एक फिल्म है तो MS Dhoni इसके 'महानायक'

MS Dhoni का कप्तानी छोड़ना मतलब एक अध्याय का अंत है और अब एक दशक बाद यह कहानी 'BD और AD' (धोनी के बाद और धोनी से पहले) पर आधारित होगी.

महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) को अगर क्रिकेट का अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. उन्होंने खुद को क्रिकेट के सबसे बड़े ‘महानायक’ के रूप में साबित किया है. वह आईसीसी के तीनों खिताब जीतने वाले इकलौते कप्तान हैं, जबकि आईपीएल में भी उनकी धाक देखते ही बनती है. वह इस लीग की शुरुआत से ही चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) की पहचान रहे हैं.

अगर चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) एक फिल्म है तो एमएस धोनी (MS Dhoni) इसके स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर और और लीड एक्टर (मुख्य किरदार) हैं, जिसमें एन श्रीनिवासन एक शानदार निर्माता (डायरेक्टर) होंगे, जिन्हें अपने इस धुरंधर पर पूरा भरोसा है. लेकिन 14 वर्षों के बाद पहली बार धोनी के साथ ‘कप्तान’ शब्द नहीं जुड़ा होगा, जिन्होंने नेतृत्वकर्ता की जिम्मेदारी छोड़ दी है, जबकि कप्तानी उनकी पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बन गई थी.

चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कासी विश्वनाथन ने मीडिया में कहा कि यह धोनी का फैसला था और सभी को इसका सम्मान करना चाहिए. कप्तानी के पद को अंतिम बार छोड़ने का समय इससे बेहतर नहीं हो सकता था और शायद अब से एक दशक बाद दो युग होंगे- ‘BD (बिफोर धोनी) और AD (आफ्टर धोनी)’ धोनी से पहले और धोनी के बाद. सार्वजनिक मौके पर केवल एक बार ही धोनी की आंखे नम दिखी थीं और वो 2018 में सीएसके की आईपीएल में वापसी के दौरान थीं. वह भावुक हो गए थे और टीम के साथ उनका जुड़ाव साफ देखा जा सकता था. वह चेन्नई के ‘थाला’ हैं जो कभी भी गलत नहीं होता.

वह टीम का ऐसा कप्तान हैं, जिसे कभी हराया नहीं जा सकता और इसके पीछे कारण भी है क्योंकि कोई भी फ्रैंचाइजी 12 चरण में नौ बार आईपीएल के फाइनल तक नहीं पहुंची है. (इसमें दो साल टीम को निलंबित भी किया गया था). धोनी की कप्तानी दो चीजों पर आधारित रही- व्यावहारिक ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृति. व्यावारिक समझ यह कि कभी भी टी20 क्रिकेट के मैचों को पेचीदा नहीं बनाना. स्वाभाविक प्रवृति में इस बात की स्पष्टता कि कौन खिलाड़ी कुछ विशेष भूमिका निभा सकता है और वह उनसे क्या कराना चाहते हैं.

धोनी ने कभी भी आंकड़ों, लंबी टीम बैठकों और अन्य लुभावनी रणनीतियों पर भरोसा नहीं किया. इसलिए उन्होंने आजमाए हुए भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों पर विश्वास दिखाया और खुद ही कुछ घरेलू खिलाड़ियों को तैयार भी किया. इनमें ड्वेन ब्रावो, फाफ डु प्लेसिस हों या फिर जोश हेजलवुड या फिर सुरेश रैना, अंबाती रायुडू, रवींद्र जडेजा और रुतुराज गायकवाड़ शामिल हों. उन्हें विभिन्न भूमिकाओं के आधार पर चुना गया जिसमें वे साल दर साल प्रदर्शन करते रहें.

धोनी अगर लीग में कप्तानी के लिए तैयार रहते तो भी सीएसके प्रबंधन (विशेषकर एन श्रीनिवासन) को कोई दिक्कत नहीं होती जो उनकी बल्लेबाजी फॉर्म को लेकर भी चिंतित नहीं है जो पिछले छह वर्षों में फीकी हो रही है. लेकिन धोनी के लिए सीएसके के हित से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है और यह फैसला भावना में बहकर नहीं बल्कि व्यावहारिक चीजों को देखकर लिया गया है.

कप्तानी भले ही रविंद्र जडेजा को सौंप दी गयी है, जिन्होंने रणजी ट्राफी में कभी भी सौराष्ट्र की कप्तानी नहीं की है. लेकिन धोनी ने कप्तानी का पद छोड़ा है, पर ‘नेतृत्वकर्ता’ की भूमिका नहीं. जडेजा भले ही पद संभालें लेकिन जिम्मेदारी झारखंड के इस अनुभवी धुरंधर के हाथों में ही होगी. धोनी को शायद महसूस हुआ होगा कि वह इस बार सभी मैच नहीं खेल पाएंगे, इसलिए उन्होंने लीग शुरू होने से दो दिन पहले यह फैसला किया.

(एजेंसी: भाषा)

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