इंग्लिश ऑलराउंडर मोईन अली (Moeen Ali) ने अपने क्रिकेट करियर से शुरूआती दिनों को याद करते हुए अपने परिवार के संघर्षों का खुलासा करते हुए कहा कि जिस कठिन हालात में उन्होंने खेलना शुरू किया, उसके बारे में सोचने मात्र से आज उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अली ने सीमित ओवर फॉर्मेट करियर को बेहतर करने के लिए टेस्ट क्रिकेट छोड़ दिया था.
मोईन ने अपने प्रारंभिक वर्षों में उनके द्वारा सामना किए गए संघर्षो के बारे में खुलकर बातचीत की, उन्होंने खुलासा किया कि उनके परिवार के पास एक पाउंड भी नहीं होते थे, जिससे उन्हें सैंडविच या खीरे पर जीवित रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
34 साल के ऑलराउंडर ने कहा, “मेरे पिताजी में क्रिकेट को लेकर बहुत बड़ा जुनून था. उनके जुड़वां भाई भी थे. परिवार में हम पांच थे. मुझे बस याद है कि जब मैं आठ साल का था. तब मैंने पार्क में अपने भाइयों के साथ खेलना शुरू किया और मुझे लगा कि वे भी बेहतर हो रहे हैं. इसलिए, जब मैं 19 साल का था, तब मैंने एक ट्रायल दिया और फिर मैंने पहली बार किसी के साथ हार्ड बॉल से क्रिकेट खेला.”
मोईन ने कहा, “ये शुरुआत थी, जब मैं जल्द ही कम उम्र में काउंटी क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था और साथ ही खेल से प्यार करते हुए अच्छा कर रहा था, लेकिन क्रिकेट मेरे पिताजी का जुनून था और हम बस इसे खेलते चले गए.”
मोईन ने कहा कि उनके पिता को बहुत मुश्किल से अपना काम और बच्चों को काउंटी खेलों के लिए ले जाना पड़ता था, ये कहते हुए कि कभी-कभी वो पेट्रोल और कभी-कभी भोजन का खर्च नहीं उठा सकते थे.
मोईन ने आगे कहा, “मेरे संघर्ष में ये सिर्फ मेरे पिताजी और चाचा ही नहीं थे. मेरी मां और चाची भी कपड़े तैयार में मदद करती थी, ताकि सब कुछ समय पर हो जाए. ये बहुत-बहुत कठिन समय था, लेकिन हमारे लिए सबसे अच्छा समय था.”
उन्होंने आगे कहा, “ये उन कई कहानियों में से एक थी, जहां आर्थिक रूप से हम वास्तव में संघर्ष कर रहे थे. मेरे चाचा और पिताजी अगले मैच के लिए मुर्गियां बेचते थे. मेरे पास एक समय में अपने पैड भी नहीं थे. मैं अभ्यास के लिए अपने पिता के दोस्त के बेटे के पैड का उपयोग करता था. इसलिए, बहुत कठिन लेकिन आश्चर्यजनक दिन थे. मैं बहुत जल्दी पेशेवर खिलाड़ी बन गया और चीजें बेहतर और बेहतर होती चली गईं.
क्रिकेट के मैदान पर मोईन तेजी से उठे, पहले एक सीम-गेंदबाजी ऑलराउंडर के रूप में शुरुआत करते हुए एक कोच के आग्रह पर ऑफ-स्पिन गेंदबाज बन गए, जिससे उनकी पीठ की समस्या भी दूर हो गई.
उन्होंने आगे कहा, मेरे लिए हर दिन खेलना सामान्य बात थी. मुझे नहीं पता था कि पेशेवर होना क्या होता है. मुझे लगा कि यह जीवन में हर दिन खेलना होगा और मेरे पिताजी ने कहा, 13 से 15 तक तुम अपने क्रिकेट को दो साल दो. स्कूल के बाद, हम प्रशिक्षण लेते थे और हम बाहर पार्क में खेलने जाते थे.”
उन्होंने आगे बताया, “हम बहुत मुश्किल हालात में रहते थे, क्योंकि जहां हम रहते थे, वहां आए दिन लड़ाई-झगड़े होते रहते थे. लेकिन मैं सिर्फ क्रिकेट खेलना चाहता था और उसी को आगे बढ़ाते चला गया.”