न्यायालय ने BCCI के संविधान मसौदे पर राज्य क्रिकेट संगठनों से मांगे सुझाव
क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने 20 अप्रैल को दायर याचिका में आरोप लगाया था कि रणजी ट्रॉफी सहित राष्ट्रीय स्तर के घरेलू टूर्नामेंट में बिहार को खेलने की अनुमति देने के आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के संविधान के मसौदे पर राज्य क्रिकेट एसोसिसएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव मांगे। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने न्यायालय के पहले के आदेश पर अमल नहीं करने के कारण बीसीसीआई के अधिकारियों के खिलाफ क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार की अवामनना याचिका का भी निबटारा कर दिया।
क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने 20 अप्रैल को दायर याचिका में आरोप लगाया था कि रणजी ट्रॉफी सहित राष्ट्रीय स्तर के घरेलू टूर्नामेंट में बिहार को खेलने की अनुमति देने के आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है। इस बीच, पीठ ने बीसीसीआई, प्रशासकों की समिति और न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम के इस कथन पर विचार किया कि बिहार सितंबर से शुरू होने वाले क्रिकेट के सत्र में राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में हिस्सा लेगा।
पीठ ने कहा कि संविधान के मसौदे को वह मंजूर करेगा और यह बीसीसीआई के लिये बाध्यकारी होगा। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 2016 का फैसला वापस लेने के लिये दायर याचिकाओं पर उसका आदेश संविधान के मसौदे की वैधता के सवाल पर भी गौर करेगा। न्यायालय ने राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से कहा कि वे संविधान के मसौदे पर अपने सुझाव न्याय मित्र गोपाल सुब्रमणियम को 11 मई को सौंपे। इस मामले में अब 11 मई को आगे सुनवाई होगी।
पीठ ने महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन को निर्देश दिया कि वह कल होने वाले अपने चुनाव स्थगित कर दे। प्रशासकों की समिति ने पिछले साल अक्तूबर में बीसीसीआई के संविधान का मसौदा न्यायालय में पेश किया था जिसमें बोर्ड में सुधार के बारे में आर एम लोढा समिति के सुझावों को शामिल किया गया है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के मसौदे में लोढा समिति के सुझाव पूरी तरह शामिल किये जायें ताकि अंतिम निर्णय के लिये एक समग्र दस्तावेज उपलब्ध हो सके।
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