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भारतीय तेज गेंदबाज मुनाफ पटेल की अनकही कहानी
मुनाफ पटेल बचपन में एक टाइल्स फैक्ट्री में काम करते थे जहां उन्हें 8 घंटे का 35 रुपया मिलता था।
Written by Devbrat Bajpai
Published: Feb 19, 2016, 10:19 AM (IST)
Edited: Feb 19, 2016, 12:01 PM (IST)


क्रिकेट में हमेशा से देश के कोने-कोने से आए छैल-छबीले क्रिकेटर शामिल होते रहे हैं और अपनी प्रतिभा से भारतीय टीम को लाभान्वित करते रहे हैं। एक ऐसे ही गुजरात के छोटे से गांव से आए क्रिकेटर हैं मुनाफ पटेल। अपनी बेहतरीन गेंदबाजी से सबको मुरीद बनाने वाले मुनाफ चोट के कारण साल 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेली जा रही श्रृंखला के बाद बाहर हो गए थे, लेकिन उसके बाद वह एका-एक क्रिकेट की चमक-दमक से गायब हो गए। 2011 विश्व कप में भारतीय टीम की ओर से तीसरे नंबर पर सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे मुनाफ साल 2013 तक आईपीएल में खेलते नजर आए थे, लेकिन तीन सालों के इस लंबे अंतराल में उनके बारे में बहुत कम सुनने को मिला। ऐसा मालूम होता है कि यह क्रिकेट सितारा गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो सा गया है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक मुनाफ अपने पूरे परिवार के साथ आजकल अपने पैतृक गांव इखार में रहते हैं। यह गांव गुजरात के भारुच जिले के अंतर्गत आता है। भले ही विश्व क्रिकेट उन्हें लगभग भुला चुका हो लेकिन वह आज भी अपने इखार गांव में हीरो हैं। जब वह बड़ौदा के लिए रणजी नहीं खेल रहे होते तब वह इखार में अपने घर में होते हैं। इस गांव में मुनाफ का एक बड़ा सा घर है। ये भी पढ़ें: सौरव-डोना: भारतीय क्रिकेटर की विवादास्पद ‘लव स्टोरी
मुनाफ ने इसी गांव से बड़े-बड़े सपने देखे थे। साल 1990 की बात है जब वह गांव के ही स्कूल में 7वीं दर्जे में पढ़ाई करते थे। उस समय वह सबसे तेज गेंदबाज थे, लेकिन वह क्रिकेट नहीं खेलना चाहते थे। क्योंकि उनके घर में गरीबी थी और वह उससे निजात पाना चाहते थे। उनके पिता दूसरों के खेतों में काम करते थे। बच्चों को साल में एक बार कपड़े दिलवाए जाते थे। इस गरीबी में अपने पिता को सहयोग करन के लिए मुनाफ ने एक टाइल फैक्टरी में काम करना शुरू कर दिया जहां उन्हें 8 घंटे काम करने पर 35 रुपए रोज मिलता था।
मुनाफ इन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “दुख ही होता था लेकिन झेलने की आदत हो गई थी। हमारे पास पर्याप्त पैसे नहीं थे, लेकिन हम कर भी क्या सकते थे? पिता अकेले कमाने वाले थे और हम लोग स्कूल जाते थे।” एक दिन उनके काम करने की बात को उनके दोस्त ने उनके शिक्षक को बता दिया। शिक्षक ने मुनाफ से बात करते हुए कहा, “तुम्हारी उम्र क्या है? जब तुम अपना स्कूल पूरा कर लोगे तब तुम काम कर सकते हो। अभी सिर्फ खेल पर ध्यान दो।” ये भी पढ़ें: ये क्रिकेटर जिन्होंने बदल दिया अपना मजहब
कुछ सालों के बाद मुनाफ की मुलाकात उनके गांव के ही एक व्यक्ति युसुफ भाई से हुई। मुनाफ ने युसुफ से उन्हें उनके क्रिकेट करियर को जारी रखने के लिए बड़ौदा ले जाने को कहा। उस समय तक मुनाफ चप्पलों में क्रिकेट खेला करते थे। युसुफ ने उन्हें जूते दिलवाए और क्रिकेट क्लब में भर्ती करवाया। मुनाफ आज भी युसुफ के शुक्रगुजार हैं और जब भी युसुफ यूके(यूनाइटेड किंगडम) से आते हैं मुनाफ उनसे मिलने तुरंत पहुंच जाते हैं।
लेकिन उनके पिता उनके क्रिकेट से खुश नहीं थे, हर दिन शाम के खाना के समय वह मुनाफ को क्रिकेट छोड़कर उनके साथ काम करने के लिए कहते। साथ ही वह चाहते थे कि मैं अफ्रीका जाऊं और वहां से पैसे कमा कर लाऊं। इखार जहां ज्यादातर कॉटन बेचने वाले गरीब किसान रहते हैं। अफ्रीका जाना गरीबी से बाहर निकलने का पासपोर्ट माना जाता है। हर साल लोग अपने दोस्त व संबंधी की जान पहचान से इन देशों में जाते हैं और यहां दुकानों व फैक्ट्रियों में लग जाते हैं। मुनाफ के भी एक चाचा ज़ांबिया में रहते थे इसीलिए उनके पिता चाहते थे कि वह उनके पास जाएं और काम में लग जाएं। मुनाफ कहते हैं कि इसमें मेरी पिता की गलती नहीं थी क्योंकि हमारे गांव में शायद ही किसी को तब पता था कि मैं इस खेल के सहारे पैसे भी कमा सकता हूं।
क्रिकेट कोचिंग में मुनाफ की प्रतिभा को कई लोगों ने सराहा और उन्हें लगातार मौके मिलने लगे। वह कहते हैं कि पूर्व विकेटकीपर किरन मोरे ने उनसे एक भी पैसा लिए हुए उन्हें ब्रांडेड जूतों का पहला जोड़ा खरीदवाया था। उन्होंने उन्हें बड़ौदा की एकेडमी में ट्रेंड किया और आगे के लिए एमआरएफ स्कूल चेन्नई भेजा। एमआरएफ में पटेल ने दुनिया के कायदों को सीखा।
सचिन तेंदुलकर के कहने पर उन्होंने मुंबई रणजी टीम को ज्वाइन किया। वह कहते हैं कि इस दौरान उन्होंने क्रिकेट के बारे में बहुत कुछ सीखा लेकिन वह इसकी लाइफस्टाइल को नहीं अपना सके। मुंबई क्रिकेटर उन्हें पार्टी में आने के लिए बुलाते थे, लेकिन पटेल तैयार नहीं रहते थे। बाद में एक विदेशी दौरे के दौरान वह क्लब गए थे। वह कहते हैं, “मैं सोचता था कि अगर मैं वहां जाऊंगा तो मुझे शराब पीना पड़ेगी।” पटेल के करीबी दोस्त रहे गंभीर ने उन्हें एक बार बताया था कि क्लब में जाकर शराब पीना जरूरी नहीं है। साथ ही गंभीर भी शराब नहीं पीते। इसके बाद वह उनके साथ क्लब गए। पटेल आज भी शराब नहीं पीते।
अगले कुछ सालों में पटेल के अंदर अपने अधिकारों के प्रति लड़ने की भावना जाग्रत हुई और वह अपने सिद्धांतों के लिए अडिग रहने लगे। साथ ही खराब निर्णय के खिलाफ भी वह अपना रोष व्यक्त कर देते थे। साल 2009 में दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल आयोजित किया गया। उस समय वह राजस्थान रॉयल्स में शेन वॉर्न की कप्तानी में खेला करते थे। इस टूर्नामेंट के एक मैच में जब राजस्थान का मैच फंसा हुआ था तब उन्होंने वॉर्न से गेंदबाजी उन्हें देने के लिए कहा, लेकिन उन्हें गेंदबाजी नहीं दी गई और राजस्थान मैच हार गई।
इस बात को लेकर मुनाफ को तेज गुस्सा आया और उन्होंने सीधे जाकर टीम के मालिक मनोज बादाले से अपना पासपोर्ट मांगा। जब उन्हें वार्न मनाने पहुंचे तो वह गेट लगाकर कमरे के अंदर घुस गए और वापस जाने की धमकी दी। वार्न ने गेट पर नॉक करते हुए मुनाफ को बुलाया। वॉर्न ने कहा, ‘गेट खोलो यार’, मुनाफ ने कहा, ‘मैं नहीं खोलूंगा, मुझे आपकी एक बात भी नहीं सुननी। आप जाइए।’ हालांकि मुनाफ वॉर्न की कप्तानी के बहुत बड़े प्रशंसक थे। वह कहते हैं, ‘वॉर्न में एक जादू था। उनमें यह काबिलियत थी कि वह हर किसी के भीतर एक बेहतरीन प्रदर्शन निकाल सकते थे।’
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साल 2011 में मुनाफ 5-6 महीने तक अपनी चोट के कारण क्रिकेट से बाहर रहे और उसके बाद वह वापसी करने में कामयाब नहीं हो पाए। साल 2013 में उन्हें आईपीएल में मुंबई इंडियंस की ओर से खेलते देखा गया था, लेकिन बाद के सालों में मुनाफ की बोली नहीं लगी और इस तरह यह चमकता सितारा गर्दिश में कहीं खो गया। मुनाफ कहते हैं कि वह अब आराम करना चाहते हैं और गांव में शांति है। हाल ही में मुनाफ पटेल सैय्या मुश्ताक अली टी20 में खेलते नजर आए थे।