वीरेंद्र सहवाग ने मुझे कहा था कि यह मेरी आखिरी टेस्ट सीरीज हो सकती है: मुरली विजय

मुरली विजय का करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. इस सलामी बल्लेबाज ने 2013 के लम्हे को याद किया है.

By Bharat Malhotra Last Published on - January 18, 2023 9:06 AM IST

मुरली विजय का टेस्ट करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. साल 2008-2011 तक उन्हें एक उभरता हुए सलामी बल्लेबाज के तौर पर देखा जा रहा था. लेकिन साल 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज ने उन्हें एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया. इस शानदार सीरीज को याद करते हुए विजय बताते हैं कि कैसे उन्हें टीम में अपनी जगह खोने को लेकर डर था. पहले मैच में वह सिर्फ 10 और 6 रन ही बना पाए थे और इसके बाद उन्हें लगने लगा था कि अब उनकी जगह बचनी मुश्किल है. लेकिन एक बार जब हैदराबाद में खेले गए सीरीज के दूसरे टेस्ट में उन्होंने 167 रन की पारी खेली, उन्हें लगा कि अपना टाइम आ गया है.

उन्होंने डब्ल्यूवी रमन के साथ स्पोर्ट्स्टार के लिए कहा, ‘मैं बेशक, मुझे लगता है कि जब मैंने हैदराबाद में सेंचुरी लगाई तो यह मेरे करियर में वापसी के लिहाज से बहुत अहम था. अगर मैं गलत नहीं हूं तो यह साल 2012 की बात थी. मुझे सटीक समय तो याद नहीं है लेकिन यह लगभग इसी वक्त के करीब की बात है, जब वीरेंदर सहवाग और मैं सलामी बल्लेबाजी कर रहे थे. मुझे इस बात का अंदाजा था, वह आए और उन्होंने मुझे कहा, ‘यह तुम्हारी आखिरी टेस्ट सीरीज हो सकती है.’ और मुझे लगता है कि हैदराबाद की पारी काफी अच्छी थी और उसने मुझे काफी राहत दी.

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विजय ने इसके बाद एक और सेंचुरी लगाई और फिर एक और. मोहाली में उन्होंने 153 रन की पारी खेली. यह शिखर धवन का पहला टेस्ट मैच भी था. इसके बाद विजय ने कभी मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद उनकी गिनती भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में होने लगी. साल 2014 में उन्होंने नॉटिंगम में इंग्लैंड के खिलाफ 146 रन की पारी खेली और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिसबेन में 144 रन बनाए. इन पारियों को किसी भारतीय सलामी बल्लेबाज द्वारा विदेशी धरती पर खेली गईं सर्वश्रेष्ठ पारियों में गिना गया. साल 2017 में उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ लगातार सेंचुरी लगाईं पर 2018 में इंग्लैंड दौरे पर खराब प्रदर्शन के बाद वह हमेशा के लिए टीम से बाहर हो गए.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे पास वहां खेलने के लिए इतना संयम होगा. उस पारी ने मुझे भरोसा और विश्वास दिया कि मैं कहीं भी खेल सकता हूं. मेरे निजी जीवन और क्रिकेट को लेकर परिस्थितियां एक साथ चलीं. इसके बाद मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा. मुझे पूरा यकीन था कि मैं दुनिया में कहीं भी परफॉर्म कर सकता हूं. ट्रेंटब्रिज में खेली गई पारी मेरे करियर की सर्वश्रेष्ठ पारियों में थी.’

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