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विराट कोहली अपशब्दों का जवाब आक्रामक होकर देते हैं, मैं इस मामले में उल्टा हूं: अजिंक्य रहाणे

वर्तमान में अजिंक्य रहाणे भारतीय टेस्ट टीम के उप- कप्तान हैं।

user-circle cricketcountry.com Written by Devbrat Bajpai
Last Published on - September 18, 2016 12:40 PM IST

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भारतीय टीम का एक पूरी तरह से पैक कैलेंडर इंतजार कर रहा है। टीम इंडिया अगले 6 महीनों में अपने घर पर कुल 13 टेस्ट मैच न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश के विरुद्ध खेलने वाली है। भारतीय टीम के सबसे भरोसेमंद और टेस्ट टीम के उप- कप्तान अजिंक्य रहाणे का प्रदर्शन सीरीजों में सबसे इन महत्वपूर्ण हो सकता है। रहाणे आजकल मध्यक्रम में बढ़िया प्रदर्शन कर रहे हैं और ऐसे में कोहली जाहिर तौर पर आगामी टेस्ट सीरीजों में अपनी दावेदारी एक भावी विजेता के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। हाल ही में रहाणे ने एक अंग्रेजी वेबसाइट के साथ इंटरव्यू में अपनी जिंदगी से जुड़ी कई बातें साझा कीं।

रहाणे से पूछा गया। एक बालक होते हुए, आप मुंबई की लोकल में यात्रा करके क्रिकेट खेलने के लिए जाते थे। आपने ये विश्वास करना कब से शुरू कर दिया था कि आप क्रिकेटर बन सकते हैं?

– मेरा दिन 5.30 बजे शुरू होता था। मैं ट्रेन 6 बजे सुबह पकड़ता था और इस दौरान मैं दोम्बीवली से सीएसटी तक यात्रा करता था और उसके
बाद आजाद मैदान जाता था। मुझे ट्रेन में यात्रा करने में 2 से 3 घंटे लग जाते थे और कभी कभार उससे ज्यादा भी। मैं सीएसटी से आजाद मैदान अपना किट बैग लेकर जाता था और उसी रास्ते से लौटता था। मैं बड़ा उत्साही था लेकिन मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि मैं क्या करना चाहता हूं, मैंने कभी योजना नहीं बनाई। जाहिर तौर पर मेरा एक लक्ष्य था। मैं अपने देश की ओर से खेलना चाहता था। उत्साही होना महत्वपूर्ण है। इससे आपको जगह मिलती है। मुंबई की ट्रेन में लंबे समय तक यात्रा करने से मैं मानसिक रूप से मजबूत बना। लोगों ने ट्रेन में मेरी बहुत मदद की. वो मुझे बैठने के लिए जगह देते थे, मेरा बैग रख लेते थे। सुबह- सुबह यात्रा करने के दौरान मैं कभी- कभार स्टॉप आने से पहले सो भी जाता था। लोग मुझे जगाते थे और कहते थे सीएसटी स्टेशन आ गया है। लोगों ने मुझे बहुत सहयोग दिया। मुझे आज भी वह यात्रा याद है। वह हमेशा मेरी यादों में मेरे साथ रहेगी। अक्सर हम लोगों और परिस्थितियों को भूल जाते हैं जिनकी बदौलत हम वहां पहुंचे हैं जहां हम हैं। वर्तमान समय में हमें उनका सम्मान करना चाहिए।

दूसरा सवाल पूछा गया, तो आप यात्रा करने के दौरान क्या करते थे?

– आजकल आईपोड और अन्य तरह की चीजें हैं। उस समय वॉकमैन हुआ करते थे। ट्रेन में हालांकि, बहुत लोग गाने गाते नजर आ जाते हैं। लोग जो ऑफिस जाते थे वे ग्रुप में मिलकर गाने गाते थे उन्हें सुनकर और उस वातावरण में रहकर बड़ा अच्छा लगता था। मेरे पास तब वॉकमेन नहीं था, और मैं तब काफी युवा भी था। मुझे याद है कि जब मैंने ट्रेन में यात्रा करना शुरू की तब मेरी उम्र 8 साल थी। पहले दो- तीन दिनों के लिए मेरा पिता मेरे साथ आए, लेकिन उन्हें अपने ऑफिस जाना होता था और वह हर दिन मुझे छोड़ने नहीं आ सकते थे। एक दिन उन्होंने मुझे दाम्बोवली स्टेशन पर छोड़ा और कहा कि मुझे खुद ही यात्रा करनी होगी। वह मेरे पीछे कॉम्पार्टमेंट में थे और मेरे पीछे- पीछे सीएसटी तक आए ये देखने के लिए कि क्या मैं अच्छी तरह से आ पाऊंगा। वह सीएसटी तक आए और फिर दादर वापस चले गए। जहां उनका दफ्तर the B.E.S.T. था। उसके बाद से आश्वस्त हो गए कि मैं अकेले यात्रा कर सकता हूं। आजकल माता- पिता अपने बच्चे को अकेला छोड़ने में हिचकिचाते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि ये जोखिम लेना महत्वपूर्ण है। साथ ही हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था कि हम कैब या कार के माध्यम से यात्रा कर पाते।

रहाणे से तीसरा सवाल पूछा गया: आपके बारे में एक स्टोरी है कि जब आप 10 साल के थे और आप 25 साल के तेज गेंदबाज के सामने बल्लेबाजी कर रहे थे जो मैदान के पास स्थिति रेस्टोरेंट में वेटर था। क्या आपको उसके बारे में कुछ याद है?

अरे हां, मुझे आज भी वो याद है। जाहिर है कि तब मैं बहुत छोटा था और गेंद मेरे हेलमेट पर लगी। उससे मुझे बहुत दर्द हुआ था। सब कोई मेरे आसपास इकट्ठा हो गए क्योंकि मैं बच्चा था। विपक्षी टीम वालों ने मुझसे कहा कि यह मेरे लिए स्पोर्ट नहीं है और मुझे ड्रेसिंग रूम में जाने के लिए कहा। मैंने तब उनसे कुछ नहीं कहा लेकिन सोचा कि मैं इतनी दूर से यात्रा करके आया हूं और मुझे सिर्फ ये मौका मिला। और अगर मुझे कमजोर मान लिया गया तो हो सकता है कि मुझे मैच में खेलने के लिए सिलेक्ट न किया जाए। इसलिए मैंने सोचा कि मेरे पास ये ही मौका है इसलिए ये बढ़िया होगा कि अच्छा प्रदर्शन किया जाए।

मैं सोचता हूं एक अलग तरह का रवैया जरूरी है। मैं दृढ़निश्चयी था और मैं कुछ उल्लेखनीय करना चाहता था। मुझे नहीं पता था कि अगली गेंद में क्या होगा। लेकिन लड़ने के लिए तैयार रहने वाला रवैया महत्वपूर्ण था। इसलिए मैंने अगली पांच गेंदों में 5 चौके जड़े। मेरे विपक्षियों और उसी गेंदबाज ने मेरी सराहना की।

रहाणे से अगला सवाल पूछा गया। क्या वह बाउंसर के साथ वह संबंध जारी रहा। ऑस्ट्रेलिया के पीटर सिडल की गेंद आपके डेब्यू मैच में आपके हेलमेट को जा लगी थी। और फिर उसके बाद डेल स्टेन के साथ दक्षिण अफ्रीका में द्वंदयुद्ध देखने को मिला।
मुझे सिडल वाली घटना याद है। वह मेरे पहले मैच में हुआ था। और फिर वो स्टेन वाला वाकया घटा। मुझे याद है कि तब तक मैं काफी दृढ़निश्चयी और प्रेरित हो चुका था। जब मुझे बाउंसर लगी तो हम भोजनवकाश के लिए आए। मैंने कुछ नहीं खाया, मैं सिर्फ बैठा रहा और सोचता रहा कि किस प्रकार के प्रभाव को मुझे छोड़ने की जरूरत है। मैं कैसे गेंदबाज पर हावी हूंगा। मैच में आपको कुछ करने की जरूरत होती है उससे पहले कि आपके विपक्षी कर लें। मैं सोच रहा था कि मैं कैसे वापस आक्रमण कर सकता हूं। मैं विराट कोहली के साथ बल्लेबाजी कर रहा था और उसी समय उसने मुझसे कहा कि पलटवार करो। ऐसा ही मैंने लंच के बाद किया और उसके बाद मेरा विश्वास बढ़ता चला गया। बतौर बल्लेबाज, आपको लय में आने की जरूरत होती है और मैंने तब अपनी लय प्राप्त कर ली थी।

आप मेडिटेशन(ध्यान) भी करते हैं। ये कैसे हुआ?

मैंने मेडिटेशन करना तब शुरू किया था जब मैं अंडर- 16 की ओर से खेलता था। तब मुझसे किसी ने ये करने को नहीं कहा था। लेकिन मैं खुद 10 से 15 मिनट तक शांत होकर बैठता था। फिर मेरा दादाजी जो योगा का अभ्यास करते थे ने कहा कि मैं योगा और मेडिटेशन करना शुरू कर दूं क्योंकि इससे मुझे अपने खेल में मदद मिलेगी। यह अन्यथा भी मदद करेगा। जिंदगी में हर व्यक्ति का सामना कठिन परिस्थितियों से होता है ऐसे में उन्हें शांत रहना चाहिए और अच्छे निर्णय लेने चाहिए। यहां तक कि अब भी मैं सुबह 20 से 30 मिनट तक मेडिटेशन करने की कोशिश करता हूं।

आप अपशब्दों पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं?

असल में, विपक्षियों को आपकी प्रतिक्रिया चाहिए होती है। वे जांचते हैं कि जो वे कह रहे हैं उस पर आप प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि नहीं। उनका इरादा मेरे फोकस और माइंड को भटकाने का होता है। मैं उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं देता। मैं सिर्फ उनकी ओर देखता हूं कभी कभार मुस्करा देता हूं तो कभी कभार घूर लेता हूं। हर किसी का ऐसी परिस्थितियों में निपटने का अपना तरीका होता है। उदाहरण के तौर पर विराट कोहली आक्रामक होने के लिए प्रेरित हो जाता है। वह गेंदबाज को उल्टा जवाब दे सकता है। इससे उसको मदद मिलती है। मैं उससे उल्टा हूं। मुझे अपने आपको प्रेरित करने के लिए, शांत रहो और उनकी तरफ घूरते रहो। लेकिन अगर मुझे कोई कुछ कहता है तो मैं ज्यादा प्रेरित महसूस करता हूं। यह चुनौती बन जाती है।

क्या आपने कभी अपशब्द कहे हैं?

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मैं अपशब्द नहीं कहता। ये मेरा स्टाइल है, और मैं अपना स्टाइल बदलना नहीं चाहता। लेकिन अगर कोई टीम को गाली देता है हम तब जरूर कुछ करेंगे। हमें एक दूसरे का समर्थन रहता है। इसीलिए तब ही मैं शामिल होता हूं। मुझे गालियां देने में विश्वास नहीं है। जिसका इरादा होता है कि मात्र बल्लेबाज के फोकस को डिस्टर्ब करना। यही पूरी बात है। इसलिए अगर ये मैं यहां, वहां कॉमेंट मार कर ये सकता हूं तो मैं करता हूं या मैं टीममेटों के साथ रहता हूं और उनका समर्थन करता हूं।