Devbrat Bajpai
देवब्रत वाजपेयी क्रिकेटकंट्री हिंदी के साथ senior correspondent के पद पर कार्यरत हैं
Written by Devbrat Bajpai
Last Updated on - November 29, 2016 12:35 PM IST
यह बात वेस्टइंडीज सीरीज के पहले की है। टीम इंडिया के हेड कोच अनिल कुंबले की नियुक्ति के बाद भारतीय खेमे में उथल- पुथल सी मची हुई थी। हेड कोच अनिल कुंबले टीम की हर चीज को अपने हिसाब से मांजने को लेकर तैयार नजर आ रहे थे और इसी दौरान उन्होंने भारतीय गेंदबाजों उमेश यादव, मोहम्मद शमी, और ईशांत शर्मा को बैटिंग प्रेक्टिश करवाई। ये आमतौर पर देखने को नहीं मिलता क्योंकि अक्सर टीमें गेंदबाजों से बेहतर गेंदबाजी की अपेक्षा करती हैं। लेकिन इस बात को लेकर कुंबले को दाद देनी होगी कि उन्होंने कुछ अलग सोचा और गेंदबाजों को अपनी बल्लेबाजों को बेहतर बनाने के लिए समय दिया। ये बात जगजाहिर है कि पुछल्ले बल्लेबाजों के द्वारा बनाए गए रन हमेशा ही बोनस साबित होते हैं। कुंबले के इस दिशा में उठाए गए कदम को मास्टर स्ट्रोक कहा जाएगा।
आधुनिक क्रिकेट में चीजें पहले की अपेक्षा बहुत बदल गई हैं। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के लंबे फॉर्मेट में सफल होने का राज भी यही है क्योंकि उनके पास अच्छे गेंदबाजों और बल्लेबाजों की फौज तो होती ही है साथ ही ऐसे पुछल्ले बल्लेबाज भी होते हैं जो विपरीत समय में अच्छी बल्लेबाजी करते हैं। भारतीय टीम अक्सर ही विपक्षी टीमों के पुछल्ले बल्लेबाजों के खिलाफ रन लुटाने की पीड़ित रही है। जो अक्सर ही मैच का रुख बदलते रहे हैं। साल 2014 में जब टीम इंडिया ने इंग्लैंड का दौरा किया तो पहले टेस्ट में टीम इंडिया मैच में हावी नजर आ रही थी। इस मैच में टीम इंडिया ने पहली पारी में 457 रन बनाए थे। इसके बाद भारत ने इंग्लैंड के 298 रनों पर 9 विकेट गिरा दिए थे और उनके जीत के मौके बन गए थे। [ये भी पढ़ें: भारत बनाम इंग्लैंड मोहाली टेस्ट का लाइव स्कोरकार्ड]
लेकिन अंतिम विकेट के लिए जेम्स एंडरसन डट गए और जो रूट के साथ 198 रनों की भागेदारी निभाते हुए भारत पर 39 रनों की लीड ले गए। इस तरह ये मैच ड्रॉ रहा और टीम इंडिया को जीत के मुहाने से निराश होकर लौटना पड़ा। भले ही ये टेस्ट ड्रॉ रहा लेकिन मानसिक रूप से इंग्लैंड ने जीत दर्ज कर ली थी। उसके बाद भले ही टीम इंडिया ने अगला मैच लॉर्ड्स में जीत लिया लेकिन बाकी मैच बड़े अंतर से हारी। जाहिर है कि अगर टीम इंडिया ने पहला मैच न हारा होता तो वे इस तरह सभी मैचों में सरेंडर न करते। लेकिन पहले मैच में ही भारतीय टीम के आत्मविश्वास के परखच्चे उड़ गए थे। उसका परिणाम टीम इंडिया को पूरी सीरीज में भोगना पड़ा।
यह एकमात्र वाकया नहीं है जब टीम इंडिया पुछल्ले बल्लेबाजों के सामने पस्त हो गई। बल्कि साल 2011 में जब टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तो एमसीजी में खेले गए पहले टेस्ट में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पिछले कदमों पर धकेल दिया था। पहले बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने 333 रन बनाए। जवाब में टीम इंडिया ने 282 रन बनाए और इस तरह ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी के आधार पर 51 रनों की बढ़त ले ली। इसके बाद जब ऑस्ट्रेलिया बल्लेबाजी के लिए उतरी तो उसने 163 रनों पर अपने 7 विकेट गंवा दिए। इस तरह 217 की कुल लीड के साथ ऑस्ट्रेलिया टीम जूझ रही थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाजों ने कमाल का प्रदर्शन किया और अंतिम तीन विकटों ने आपस में 74 रन जोड़े और अब टीम इंडिया को 291 रन बनाने थे। अंततः टीम इंडिया 122 रनों से मैच हार गई।
साल 2014-15 में जब टीम इंडिया ने फिर से ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तो फिर से उन्होंने अपने आपको ऐसी ही परिस्थिति में पाया। ब्रिस्बेन में खेले गए दूसरे टेस्ट में। धोनी की टीम ने पहली पारी में 408 रन बनाए और जवाब में ऑस्ट्रेलिया के 247 रनों पर 6 विकेट गिरा दिए। इस तरह मैच टीम इंडिया के पक्ष में था। और टीम इंडिया यहां से कम से कम 50 रनों की लीड ले सकती थी। लेकिन जब ऑस्ट्रेलियाई पारी खत्म हुई तो भारतीय टीम पर ऑस्ट्रेलिया ने 97 रनों की लीड ले ली। मिचे स्टार्क और मिचेल जॉनसन ने स्टीवन स्मिथ का अच्छा साथ निभाया और भारतीय गेंदबाजों को बेअसर कर दिया। अंततः टीम इंडिया इस मैच को हार गई।
हालांकि, ऐसा कतई नहीं है कि भारत सिर्फ पुछल्ले बल्लेबाजों के दंस का शिकार हुआ है। बल्कि कई मौकों पर टीम इंडिया ने भी पुछल्ले बल्लेबाजों के दम पर मैच जीते हैं। साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया के भारत दौरे के दौरान मोहाली टेस्ट में ईशांत शर्मा ने लक्ष्मण के साथ 81 रनों की साझेदारी करते हुए मोहाली में टीम इंडिया को सीरीज की एकमात्र जीत दिलवाई थी। साल 2014 टेस्ट सीरीज में भुवनेश्वर कुमार ने मोहम्मद शमी के साथ 121 रन जोड़े थे और टीम के स्कोर को 450 के पार ले गए थे। ये बात दुख की है कि टीम इंडिया की ओर से ऐसे उदाहरणों की संख्या कम है लेकिन टीम इंडिया के खिलाफ ऐसे उदाहरणों की भरमार है।
पुछल्ले बल्लेबाजों की बल्लेबाजी को लेकर रणनीति क्या है?
पिछले एक दशक में स्टुअर्ट ब्रॉड, जेम्स एंडरसन, रेयान हैरिस, पीटर सिडल, और टिम साउदी ने कई मर्तबा अपनी भूमिका सशक्त बल्लेबाज के रूप में निभाई है। यही कारण रह है कि कई मौकों पर इनके प्रयास के कारण उनकी टीम ने कई हारे हुए मैच जीते हैं। कारण साफ है कि अगर पुछल्ले बल्लेबाजों को भरोसा दिलवाया जाएगा तो वे जाहिर तौर पर अच्छा प्रदर्शन करेंगे और नेट में बल्ले को लेकर पसीना बहाएंगे। इससे जाहिर तौर पर अंतर देखने को मिलेगा। उमेश यादव का टेस्ट में बल्लेबाजी औसत 7.78 का हैं वहीं ईशांत शर्मा का उनके ही नजदीक 8.87 का है। साथ ही शमी का औसत 12.76 का है। हालांकि, इनसे कोई उम्मीद भी नहीं करता कि ये 30 या 40 के औसत से रन बनाएं। लेकिन अगर ये औसत 20 के आसपास हो जाए तो टीम के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
नए हेड कोच अनिल कुंबले भी वही बल्लेबाज हैं जो निचले क्रम में बल्लेबाजी करने को आया करते थे। इस दौरान उन्होंने शतक जड़ा था। ये शतक उनका इंग्लैंड के खिलाफ ही आया था वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि जब पुछल्ले बल्लेबाज रन बनाते हैं तो टीम पर क्या असर पड़ता है। ये तरीका टीम को बहुत पहले लागू करना चाहिए थे। लेकिन अब भी देर नहीं हुई है। उनका यद कदम उनकी सकारात्मक सोच और आधुनिक खेल की समझ को दर्शाता है।
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