5 जून 1954 को एक ऐसे कीवी क्रिकेटर का जन्म हुआ था जिसने आगे चलकर ना केवल न्यूजीलैंड बल्कि भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। पूर्व दिग्गज क्रिकेटर जॉन राइट आज अपना 66वां जन्मदिन मना रहे हैं। आज गुरुपूर्णिमा के मौके पर हम इस पूर्व दिग्गज के करियर की कुछ उपलब्धियों के याद करेंगे, जिन्होंने बतौर कोच भारत और न्यूजीलैंड टीमों को सफलता के नए स्तर कर पहुंचाया।
1978 में न्यूजीलैंड के लिए टेस्ट डेब्यू करने वाले राइट ने 80 के दशक में कीवी टीम को टेस्ट नेशन के तौर पर स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इंग्लैंड के खिलाफ अपने डेब्यू टेस्ट मैच की पहली पारी में राइट ने करीबन छह घंटो तक बल्लेबाजी की और अर्धशतकीय पारी खेलकर इंग्लैंड के खिलाफ न्यूजीलैंड को पहली टेस्ट जीत दिलाई।
राइट ने न्यूजीलैंड के लिए खेले 82 टेस्ट मैचों में 37.82 की औसत से 5,334 रन बनाए, जिसमें 12 शतक और 23 अर्धशतक शामिल हैं। वहीं प्रथम श्रेणी करियर की बात करें तो राइट ने 366 मैचों में 42.35 की औसत से 25,073 रन बनाए, जिसमें 59 शतक और 126 अर्धशतक शामिल थे।
संन्यास लेने के बाद भी राइट क्रिकेट के मैदान से ज्यादा दूर नहीं गए। उन्होंने केंट टीम के साथ अपना कोचिंग करियर शुरू किया और फिर साल 2000 में भारतीय क्रिकेट टीम के पहले विदेशी कोच बने।
सौरव गांगुली जैसे दिग्गज कप्तान के साथ काम करते हुए राइट ने भारतीय टीम की सूरत बदली। पांच साल के अपने कार्यकाल के दौरान राइट ने टीम इंडिया को कई बड़े खिताब जिताए, जिसमें 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीता कोलकाता टेस्ट और इंग्लैंड में जीती नेटवेस्ट ट्रॉफी शामिल है।
राइट-गांगुली की जोड़ी अटूट थी, कप्तान और कोच के बीच बेहतर संवाद का असर टीम के ड्रेसिंग रूम और स्कोरबोर्ड दोनों जगह साफ था। इस जोड़ी के बारे में विजडन एंथोलॉजी 1978-2006: क्रिकेट एज ऑफ रेवोल्यूशन किताब में लिखा गया, “कप्तान सौरव गांगुली और कोच जॉन राइट जिस नई और मजबूत टीम इंडिया को तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध थे वो कागज पर लिखे विचार से कुछ ज्यादा बनती जा रही थी। हालातों ने भी भारतीय टीम के प्रयासों को महान दिखाने में बड़ी भूमिका अदा की।”
ऐसा नहीं था कि राइट के पहले के भारतीय कोच में कुछ कमी थी। बिशन सिंह बेदी जैसे कोच काफी सख्त थे और अजीत वाडेकर ने घरेलू पिचों पर विपक्षी टीम को ढेर करने के लिए घातक स्पिन गेंदबाज तैयार किए थे लेकिन राइट ने टीम इंडिया के लिए ‘जीत’ के अनसुलझे रहस्य को सुलझाया।
राइट के आने के साथ भारतीय टीम में तकनीकि तौर पर भी कई अहम बदलाव आए। उनके समय में फिटनेस का मतलब केवल फील्डिंग ड्रिल और मैदान के चार चक्कर लगाना नहीं था। राइट ने भारतीय खिलाड़ियों ने टीम इंडिया को ना केवल घरेलू स्पिन की मददगार पिचों पर जीत दिलाई बल्कि गांगुली की इस टीम को विदेशों में जीत हासिल करना भी सिखाया। राइट ने टीम इंडिया को विधिपूर्वक प्रशिक्षण के साथ जीत का विज्ञान सिखाया।
साल 2005 में टीम इंडिया के साथ कार्यकाल खत्म होने के बाद दिसंबर 2010 में राइट को अपनी राष्ट्रीय टीम के साथ काम करने का मौका मिला। बतौर कोच राइट ने अपने दो साल के छोटे कार्यकाल में न्यूजीलैंड को 2011 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऑस्ट्रेलियाई जमीन पर 26 साल बाद पहला टेस्ट मैच जितवाया।
साथ ही राइट के कार्यकाल में ही कीवी टीम 2011 विश्व कप के सेमीफाइनल तक पहुंच सकी थी। साल 2012 में उन्होंने न्यूजीलैंड टीम के कोच का पद छोड़ दिया था। फिलहाल राइट डर्बीशायर काउंटी क्लब के अध्यक्ष पद पर काम कर रहे हैं।
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