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राहुल द्रविड़ के लिए बतौर कोच कौन सी सीरीज थी सबसे मुश्किल, खुद किया खुलासा

राहुल द्रविड़ ने कहा, भारतीय टीम में कई सुपरस्टार खिलाड़ी मौजूद हैं तो लोगों को लगता है कि उनमें कहीं ना कहीं कोई ईगो होगा, हालांकि मामला इसका उल्टा है, वह अपनी तैयारी और खेल को लेकर काफ़ी ईमानदार हैं

user-circle cricketcountry.com Written by Akhilesh Tripathi
Last Updated on - August 10, 2024 2:27 PM IST

नई दिल्ली. टी-20 विश्व कप 2024 के बाद राहुल द्रविड़ का टीम इंडिया के हेड कोच के रुप में कार्यकाल खत्म हो गया. बतौर कोच राहुल द्रविड़ काफी शांत नजर आते थे, मगर टी-20 विश्व कप जीतने के बाद उनके सेलीब्रेशन ने खूब सुर्खियां बटोरी, जहां वह अपनी आखों को बंद करते हुए और हाथ में टी 20 विश्व कप की ट्रॉफ़ी लिए पूरी ताक़त के साथ चिल्ला रहे थे. द्रविड़ ने हाल ही में अपने उस सेलीब्रेशन के बारे में खुल कर बात की और मज़ाकिया अंदाज़ में अपने बेटे के लिए भी कुछ विशेष कहा और साथ ही साथ अपने मुश्किल भरे दिन का भी जिक्र किया.

द्रविड़ ने स्टारस्पोर्ट से कहा, “हम पिछले कुछ समय से कई बार बड़ी ट्रॉफ़ी के क़रीब आ रहे थे। हम टी 20 विश्व कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुंचे, हमने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फ़ाइनल खेला और वनडे विश्व कप में भी हम फ़ाइनल में थे। लेकिन हमारी टीम ट्रॉफ़ी प्राप्त करने के लिए आख़िरी लाइन को पार करने में सफल नहीं हो पा रही थी, हालांकि टी 20 विश्व कप जीतने के बाद मुझे अपनी टीम के लिए और हर उस व्यक्ति के लिए काफ़ी अच्छा महसूस हो रहा था.

उन्होंने कहा, जिन्होंने पिछले ढाई सालों से काफ़ी मेहनत की है, इसी कारण से मैं उस तरह सेलीब्रेट कर रहा था, कुल मिला कर राहत और ख़ुशी बाहर निकल कर सामने आ रही थी, हालांकि एक बात यह भी है कि मुझे उस तरह से सेलीब्रेट करने के बारे में थोड़ा सतर्क होना पड़ेगा, मेरा बेटा मुझे देख कर सोच रहा होगा कि ‘पता नहीं मेरे पिता क्या कर रहे हैं’ (हंसते हुए). द्रविड़ ने अपनी कोचिंग का प्रभार नवंबर 2021 में संभाला था.

‘दक्षिण अफ्रीका का दौरा मेरे लिए सबसे मुश्किल दौरा था’

उनका पहला विदेशी दौरा उस देश में था, जहां भारत ने कभी भी कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती था. जब द्रविड़ से पूछा गया कि भारतीय टीम के कोच रहते हुए, उनके लिए सबसे मुश्किल समय कौन सा था तो उन्होंने अपने पहले दक्षिण अफ़्रीकी दौरे के बारे में बात की. उन्होंने कहा, “दक्षिण अफ़्रीका दौरा हमारे लिए काफ़ी मुश्किल दौरा था. हमने उसे दौरे पर सेंचुरियन में पहला टेस्ट जीत लिया था, हम सबको पता था कि दक्षिण अफ़्रीका में हमने कभी भी कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती है, हमारे लिए यह बहुत बड़ा मौक़ा था,

पूर्व कोच ने कहा, हालांकि एक बात यह भी है कि हमारी टीम में कई सीनियर खिलाड़ी तब मौजूद नहीं थे. रोहित शर्मा तब चोटिल होने के कारण टीम से बाहर थे। कुछ और सीनियर खिलाड़ी भी टीम में नहीं थे, बाक़ी के दोनों टेस्ट मैच काफ़ी क़रीबी हुए, दोनों टेस्ट मैचों की तीसरी पारी में हमारे पास बड़ा मौका था, हालांकि तब दक्षिण अफ्रीका की टीम ने काफ़ी बेहतर खेल दिखाया था और चौथी पारी में उन्होंने अच्छा चेज़ किया, मैं कहूंगा कि भारतीय टीम का कोच रहते हुए यह मेरे लिए सबसे मुश्किल भरे दिन थे.

‘दक्षिण अफ्रीका दौरे पर काफी कुछ सीखने को मिला’

हालांकि राहुल द्रविड़ ने कहा, वहां से मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला, वहां हमने अपने गेम के बारे में बहुत कुछ सीखा और यह भी सीखा कि हमें किन चीज़ों पर काम करने की ज़रूरत है, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कोच के तौर पर आपको हमेशा एक जैसे दिन देखने को नहीं मिलेंगे, उतार-चढ़ाव आता रहेगा, यह समझने की ज़रूरत है कि आपको हमेशा जीत नहीं मिलने वाली है.

उन्होंने कहा, बाक़ी की टीमें भी खेलने ही आई हैं और आप विश्व स्तरीय टीमों का सामना कर रहे हैं, आपको जीत और हार के बैलेंस को समझना होगा, आपके पास हमेशा जीतने का विकल्प नहीं है लेकिन आपके पास यह विकल्प ज़रूर है कि आप हमेशा अच्छी तरह से तैयारी करें. साथ ही आपके पास यह भी विकल्प है कि आप बिल्कुल सही टीम चुनें लेकिन इन सब चीज़ों के बावजूद भी आपको हार मिल सकती है और आपको उस बैलेंस को समझना होगा.

‘टीम को एकजुट रखने में रोहित शर्मा का योगदान’

द्रविड़ से यह भी पूछा गया कि वह भारतीय टीम में मौजूद सभी सीनियर और सुपरस्टार खिलाड़ियों को एकजुट करने में कैसे सफल रहे ? तो उन्होंने कहा कि वह इस बात का पूरा क्रेडिट नहीं ले सकते और इसका काफ़ी बड़ा श्रेय रोहित शर्मा को भी जाता है. उन्होंने कहा, “मुझे हमेशा से ऐसा लगा है कि किसी भी टीम का नेतृत्व सुपर सीनियर खिलाड़ी और कप्तान करता है। रोहित के साथ काम करना मेरे लिए एक बेहतरीन अनुभव रहा है। वह एक बेहतरीन इंसान और कप्तान हैं.

‘मेरे लिए टीम को मैनेज करना कठिन नहीं था’

राहुल द्रविड़ ने कहा, इसके अलावा आप टीम के किसी भी सुपर सीनियर खिलाड़ी की बात करें – चाहे वह कोहली हों या अश्विन हों या बुमराह हों, ये सभी अपने काम के प्रति काफ़ी ईमानदार और विनम्र हैं. भारतीय टीम में कई सुपरस्टार खिलाड़ी मौजूद हैं तो लोगों को लगता है कि उनमें कहीं ना कहीं कोई ईगो होगा, हालांकि मामला इसका उल्टा है, वह अपनी तैयारी और खेल को लेकर काफ़ी ईमानदार हैं. टेस्ट क्रिकेट में आप अश्विन की भी बात करें तो वह हमेशा नई चीज़ सीखने और अपने खेल में सुधार लाने के लिए तैयार रहते हैं, सभी खिलाड़ी ऐसे ही हैं, शायद इसी कारण से वे सुपरस्टार हैं, मेरे लिए इस टीम को मैनेज करना कहीं से भी कठिन नहीं था.

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इनपुट- IANS