हर भारतीय क्रिकेट फैंस को बचपन में यही लगता था कि वो टीम इंडिया को हर मैच जिता सकते हैं, मौजूदा क्रिकेट के दिग्गज विराट कोहली भी इससे जुदा नहीं है। भारतीय कप्तान ने बताया कि जब वो छोटे तो टीम इंडिया को हारता देखकर सोचा करते थे कि अगर वो खेल रहे होते तो टीम को वो मैच जिता देते।
उन्होंने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो जब मैं बच्चा था और भारतीय टीम के मैच देखता था तो उनके हारने के बाद सोते समय सोचता था कि मैं मैच जीत दिला सकता था। अगर मैं 380 रन के लक्ष्य का पीछा कर रहा हूं तो मैं कभी महसूस नहीं करता कि इसे हासिल नहीं किया जा सकता।’’
टीम इंडिया में आने के बाद कोहली ने कई बार अपने बचपन के इस ख्वाब को सच कर दिखाया। ऐसे एक मैच को याद करते हुए कोहली ने कहा, ‘‘2011 में होबार्ट में क्वालीफाई करने के लिए हमें 40 ओवर में 340 रन बनाने थे। ब्रेक के समय मैंने सुरेश रैना से कहा कि इस मैच को हम दो बीस ओवर के मैच की तरह लेंगे। 40 ओवर लंबा समय है। पहले 20 ओवर खेलते हैं और देखते हैं कि कितने रन बनते हैं और फिर दूसरा टी20 मैच खेलते हैं।’’
कोहली ने कहा कि वो कभी भी अपने ऊपर शक नहीं करते और बेहद दबाव भरे अंतरराष्ट्रीय मैचों में बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए भी ऐसा ही होता है।
भारतीय कप्तान ने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो मैच के दौरान मैं कभी अपने ऊपर शक नहीं करता। हर व्यक्ति की कमजोरियां होती हैं। नकारात्मक पक्ष होते हैं। इसलिए दौरों पर अभ्यास के दौरान अगर आपका सेशन अच्छा नहीं रहा तो आपको लगता है कि आप लय में नहीं हो।’’
हर खिलाड़ी के लिए काम करती है अलग तकनीक
खेल के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक कोहली ने कहा कि अपनी जरूरतों के अनुसार उन्हें बल्लेबाजी के प्रति अपने रवैया में बदलाव लाना पड़ा जिसमें गेंद को हवा में मारने की जगह जमीनी शॉट खेलना शामिल है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं बदलाव किया क्योंकि मैं मैदानी शॉट खेलना चाहता था। स्थिर स्टांस के कारण मेरे पास कम विकल्प थे। मेरी सामान्य सी सोच है कि अगर आपका शरीर सही स्थिति में हैं तो आप कोई भी शॉट खेल सकते हो। स्थिर स्टांस मेरे अनुकूल नहीं था।’’
कोहली ने कहा, ‘‘लेकिन ये काफी खिलाड़ियों के लिए काम करती है। जैस कि सचिन तेंदुलकर का स्टांस पूरे जीवन स्थिर रहा और उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई। उसकी तकनीकी कहीं बेहतर थी और हाथ और आंख के बीच शानदार समन्वय था। मुझे अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव करने पड़े। मैं अपनी बल्लेबाजी में छोटी-छोटी चीजों को आजमाया क्योंकि जब तक आप परखोगे नहीं तब तक आपको पता नहीं चलेगा।’’
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