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'यह गलतफहमी है, अगर आपने ज्यादा खेला है तो ज्यादा ज्ञान होगा'

एमएसके प्रसाद पर पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने कमजोर चयनकर्ता होने का आरोप लगाया है।

user-circle cricketcountry.com Written by Press Trust of India
Last Published on - July 30, 2019 6:51 PM IST

भारतीय क्रिकेट टीम के राष्ट्रीय चयनकर्ता एमएसके प्रसाद ने पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर के विराट कोहली को कप्तान बनाए रखने ने इशारे में जवाब दिया। मौजूदा चयन समिति में शामिल पूर्व खिलाड़ियों के औसत अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड पर आलोचकों द्वारा लगातार निशाना साधे जाने पर कहा, ‘‘अगर आपने अधिक मैच खेले हैं तो आपको ज्यादा ज्ञान होगा’’।

प्रसाद ने पीटीआई को दिए खास इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी जिसमें उन्हों अपने स्तर (महज छह टेस्ट मैच खेलने का) पर उठ रहे सवालों का जवाब दिया। उन पर पूर्व महान बल्लेबाज गावस्कर ने कमजोर चयनकर्ता होने का आरोप लगाया है। चयन समिति में शामिल पांच सदस्यों को कुल 13 टेस्ट मैचों का अनुभव है।

प्रश्न: चयन समिति के कद और अनुभव को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। क्या इससे आप दुखी हैं ?

उत्तर: मैं आपको बता दूं कि चयनसमिति में शामिल सभी सदस्यों ने विभिन्न प्रारूपों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है जो हमारी नियुक्ति के समय बुनियादी मानदंड था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के अलावा हमने प्रथम श्रेणी के 477 मैच खेले हैं। अपने कार्यकाल के दौरान हम सबने मिलकर 200 से ज्यादा प्रथम श्रेणी मैच देखे हैं।’’

क्या ये आंकड़े देखने के बाद आपको नहीं लगता कि एक खिलाड़ी और चयनकर्ता के तौर पर हम सही कौशल को पहचानने की क्षमता रखते हैं ?

प्रश्न: आप लोगों ने मिलकर कुल 13 टेस्ट मैच खेले है जिस पर लोग सवाल उठाते हैं।

उत्तर: अगर कोई हमारे कद और अंतरराष्ट्रीय अनुभव पर सवाल उठा रहा तो उसे इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड के मौजूद चयन समिति के अध्यक्ष एड स्मिथ को देखना चाहिए जिन्होंने सिर्फ एक टेस्ट मैच खेला है। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के मुख्य चयनकर्ता ट्रेवोर होन्स ने सिर्फ सात टेस्ट मैच खेले हैं और वह बीच में दो साल को छोड़कर पिछले डेढ दशक से मुख्य चयनकर्ता है।

हां, 128 टेस्ट और 244 एकदिवसीय मैच खेलने वाले मार्क वा उनके अधीन काम कर रहे हैं। दिग्गज ग्रेग चैपल को 87 टेस्ट और 74 एकदिवसीय का अनुभव है और वह ट्रेवर के अधीन काम कर रहे हैं।

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जब उन देशों में कद और अंतरराष्ट्रीय अनुभव मुद्दा नहीं है तो तो हमारे देश में यह कैसे होगा ? मैं यहां पर कहने की कोशिश कर रहा हूं कि हर काम के लिए अगल जरूरत होती है।

अगर अंतरराष्ट्रीय अनुभव का ही सवाल है तो हमारे चहेते राज सिंह डूंगरपुर कभी चयनसमिति के अध्यक्ष नहीं होते क्योंकि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला ही नहीं था। ऐसे में शायद सचिन तेंदुलकर जैसा हीरा 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलता ही नहीं।

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अगर अंतरराष्ट्रीय अनुभव की बात है तो कई क्रिकेटर जिन्होंने प्रथम श्रेणी में बहुत मैच खेले है वह चयनकर्ता बनने के बारे में सोच ही नहीं सकते। ऐसे में चयन समिति के कद और अंतरराष्ट्रीय अनुभव पर टिप्पणी करना कहां तक सही और तर्कसंगत है जब इस काम में वास्तव में प्रतिभा को दिखाने के लिए एक अलग विशेषज्ञता की जरूरत है।