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हार्दिक पंड्या की टेस्ट टीम में क्यों नहीं बनती जगह?
हार्दिक पंड्या सीमित ओवरों में अब तक अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे हैं
Written by Manoj Shukla
Last Published on - November 3, 2016 12:13 PM IST


इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के पहले दो मैचों के लिए भारतीय टीम का ऐसान हो चुका है। चयनकर्ताओं ने लगभग उम्मीद के मिताबिक ही टीम चुनी है लेकिन चयनकर्ताओं का एक फैसला ऐसा रहा जिसकी किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी। ये नाम था हार्दिक पंड्या का। चयनकर्ताओं ने जब रोहित शर्मा की जगह हार्दिक का नाम लिया तो सबको हैरानी हुई। मीडिया द्वारा सवाल पूछे जाने पर मुख्य चयनकर्ता ने कहा ‘रोहित शर्मा फिलहाल चोटिल हैं और उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में 6-8 हफ्तों का समय लगेगा। हार्दिक पंड्या एक बेहतरीन हरफनमौला खिलाड़ी है, उसने अपनी गेंदबाजी में गति भी बढ़ाई है। अगर टीम तीन स्पिन गेंदबाजों के साथ जाती है तो हम पंड्या को टीम में दूसरे तेज गेंदबाज के रूप में शामिल कर सकते हैं जो बल्लेबाजी में अच्छा कर सकता है।’
पंड्या की बात करें तो उन्होंने साल की शुरुआत में टी-20 में पदार्पण किया इसके बाद उन्होंने वनडे में कीवी टीम के खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का आगाज किया और अब वह टेस्ट में भी अपना पदार्पण करने जा रहे हैं। साफ है साल 2016 पंड्या के लिए किसी सौगात से कम नहीं रहा। भले ही पंड्या को चयनकर्ताओं ने टेस्ट टीम में शामिल कर लिया हो, लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि हार्दिक पंड्या को टेस्ट टीम में क्यों नहीं मिलनी चाहिए थी जगह। तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ कारणों पर जो पंड्या को फिलहाल टेस्ट में के लायक नहीं बनाते।
4. बल्लेबाजी में अनिरंतरता: वैसे हार्दिक पंड्या बहुत ही प्रतिभावान खिलाड़ी हैं। पंड्या ने अपने खेल के दम पर साल भर में ही खेल के तीनों प्रारूपों में भारतीय टीम में जगह बनाने में कामयाब रहे। टी-20 में पंड्या के बड़े शॉट खेलने के अंदाज से और तेज-तर्रार पारी से टीम में उन्होंने बहुत कम समय में ही अपनी पहचान बना ली। पंड्या की योग्यता को देखते हुए उन्हें वनडे में भी खिलाया गया। ये भी पढ़ें: मैं मिले हुए मौके का पूरा फायदा उठाऊंगा: हार्दिक पंड्या
न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे मैचों में पंड्या को दो बार बल्लेबाजी करने का मौका मिला लेकिन दोनों ही मौकों पर पंड्या बुरी तरह फ्लॉप साबित हुए। न्यूजीलैंड के खिलाफ दूसरे मैच में पंड्या उस समय बल्लेबाजी के लिए उतरे थे जब टीम को उनसे बहुत उम्मीदें थीं। मैच काफी रोमांचक मोड़ पर था। पंड्या जब मैदान पर उतरे तो लग रहा था कि वह टीम को जीत जरूर दिलाएंगे। पंड्या ने शुरुआत भी अच्छी की लेकिन जब दबाव बढ़ने लगा तो वह उसपर खरे नहीं उतर सके और अपना विकेट फेंककर चले गए। पंड्या ने उस मैच में 32 गेंदों में 36 रन बनाए थे। अंत में उस मैच में उमेश यादव के संघर्ष की बदौलत भारत सिर्फ छह रनों से हार गया था।
वहीं सीरीज के चौथे मैच में भी हालात कुछ दूसरे मैच की ही तरह थे। भारत का ऊपरी क्रम लड़खड़ा गया था और मैच बेहद रोमांचक हो चुका था। पंड्या पर फिर से टीम को जीत तक ले जाने की उम्मीदें थी। लेकिन पंड्या एक बार फिर फ्लॉप हुए और भारत की उम्मीदों को तोड़ कर रख दिया। इस मैच में पंड्या ने 13 गेंदों पर 9 ही रन बनाए। तो आंकड़ों के मुताबिक पंड्या वनडे मैचों में मिले मौकों पर खुद को साबित नहीं कर पाए हैं।
3. गेंदबाजी में सफल न होना: कपिल देव के हाथों वनडे कैप पाकर पंड्या फूले नहीं समा रहे थे। भारत के सुपर स्टार के हाथों वनडे कैप पाना गौरव की बात होती है और खिलाड़ी में जोश भर देती है। यही हुआ पंड्या के साथ भी। पहले मैच में जोश और जुनून से भरपूर पंड्या ने गजब की गेंदबाजी की और कीवी टीम के तीन खिलाड़ियों को आउट किया और अपनी शानदार गेंदबाजी की दम पर हव मैन ऑफ द मैच भी बने। लेकिन पहले मैच के बाद पंड्या की गेंदबाजी को देखकर ऐसा लगा जैसे कि उन्हें सांप सूंघ गया हो। दूसरे मैच में पंड्या ने 9 ओवर की गेंदबाजी कराई और इस दौरान उन्हें एक भी विकेट हासिल नहीं हुआ। वहीं तीसरे मैच में भी पंड्या ने 5 ओवर की गेंदबाजी कराई जिसमें उन्होंने 34 रन लुटा डाले और विकेटों की झोली ‘सुन बटे सन्नाटा रही’। चौथे मैच में भी पंड्या अपना असर छोड़ने में नाकाम साबित हुए और धोनी ने उनसे सिर्फ पांच ओवरों की ही गेंदबाजी कराई। इन पांच ओवरों में पंड्या ने 31 रन देकर एक विकेट लिया। साफ है पहले मैच में गेंदबाजी में ओपन करने वाले पंड्या चौथे मैच तक सिर्फ पांच ही ओवर फेंक सके। जो शायद इस बात का प्रतीक है कि कप्तान एमएस धोनी का भी पंड्या की गेंदबाजी से भरोसा कम होता जा रहा था। ये भी पढ़ें: आईसीसी चैंपिंयंस ट्रॉफी 2002 में जब भारत ने दक्षिण अफ्रीका को दी थी रोमांचक शिकस्त
2. अपना किरदार न समझ पाना: दरअसल ये सबको पता है कि पंड्या में बहुत योग्यता है। वह गेंदबाजी भी कर सकते हैं, वह बल्लेबाजी भी कर सकते हैं और वह लंबे-लंबे छक्के भी लगा सकते हैं। लेकिन एक कहावत है कि ‘जब घड़े का पानी घड़े से ज्यादा हो जाता है तो वह गिरने लगता है और घड़ा उसे संभाल नहीं पाता।’ फिलहाल ये कहावत पंड्या पर बिल्कुल फिट बैठती है। पंड्या ठीक तरीके से टीम में अपनी जिम्मेदारी को समझ नहीं पा रहे हैं। उन्हें यह पता नहीं चल पा रहा है कि वह गेंदबाजी में अपना सर्वश्रेष्ठ दें, या बल्लेबाजी में दें या फिर टीम के लिए बेस्ट फिनिशर का किरदार अदा करें। इन तीनों ही पहले में पंड्या उलझे हुए हैं। ऐसे में टीम प्रबंधन की जिम्मेदारी बनती है कि वो पंड्या से इस बारे में खुलकर बात करें और उन्हें उनके किरदार के बारे में ठीक तरीके से बताएं।
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1. अनुभव की कमी: टेस्ट क्रिकेट में पंड्या को इतनी जल्दी जगह मिलना उनके करियर के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। पंड्या अभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नए हैं। पंड्या के पास टी-20 क्रिकेट के 16 वनडे क्रिकेट के सिर्फ 4 और टेस्ट का अब तक कोई अनुभव नहीं है। हम वनडे और टी-20 की तुलना टेस्ट से कर ही नहीं सकते। ऐसे में पंड्या अभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बहुत नए हैं। हो सकता है कम अनुभव के कारण वह अपनी योग्यता के अनुरूप प्रदर्शन ना कर सकें और अपने खेल में निखार ना ला सकें। हालांकि टेस्ट में खेलना पंड्या के करियर के लिए एक अहम पड़ाव हो सकता है। ये भी पढ़ें: टेस्ट क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर के इन पांच रिकॉर्डों को तोड़ सकते हैं ऐलेस्टर कुक